Sunday, November 25, 2012

तमाम दुनिया है खेल उसका


वह एक ही है जो सृष्टि के कण-कण में समाया है, तमाम दुनिया है खेल उसका, वह खेल सबको खिला रहा है. जो ऐसा जानता है वह सभी जगह उसी का दर्शन करता है. वह स्वयं जिस तरह स्वप्न में सृष्टि रचता है, उसी तरह इस जगत को स्वप्नवत ही जानता है, तभी वह उसमें फंसता नहीं है, अलिप्त रहता है. सम्पूर्ण सृष्टि रसमय है, पंचभूत भी रसमय हैं तो हम मानव ही क्यों रसविहीन जीवन व्यतीत करें, जबकि हम उन्हीं का अंश हैं. कृष्ण ने हमें वचन दिया है कि वह हमारे कुशल-क्षेम की रक्षा करेंगे. जो उसके निकट आता है वह उसे शक्ति से पूरित करता है. वह जीवनदाता है और जीवन को चलाने वाला भी है. वह हमारे पल-पल की खबर रखता है, वह लीला रचता है एक से अनेक होता है. संतों के रूप में आकर वही मानवों की सुप्त चेतना को जगाता है. वह प्रेम करता है और प्रेम चाहता है. जो आत्मस्थित है वही असली खिलाड़ी है. भक्ति और श्रद्धा के पंख लगाकर हम आत्मा के आकाश में विचरण कर सकते हैं. किनारे पर बैठकर लहरें गिनने की बजाय आत्मा के सागर में गहरे उतरना होगा तभी मोती मिलेंगे. जो किनारे पर रहते हैं उन्हें बार-बार आना पड़ता है, वे किये हुए को पुनः पुन करते हैं सीखे हुए को पुनः सीखते हैं. 



प्रिय मित्रों,  मैं बनारस व बैंगलोर की यात्रा पर जा रही हूँ, अब दिसंबर के तीसरे सप्ताह में मुलाकात होगी. आने वाले वर्ष के लिए तथा क्रिसमस के लिए अग्रिम शुभकामनायें...

3 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    आपकी यात्रा शुभ हो ... शुभकामनाएं

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  2. बहुत ही सुन्दर आलेख।

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  3. http://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_5096.html

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