अक्टूबर २००३
आदिगुरु शंकराचार्य कृत ‘विवेक चूड़ामणि’ अद्भुत ग्रन्थ है, अनुपम है, महान है. गुरु
और शिष्य के मध्य हुए अद्भुत संवाद के द्वारा वेदांत की शिक्षा प्रदान करने का
अनूठा प्रयोग ! षट् सम्पत्ति से युक्त सदाचारी शिष्य ही ब्रह्म ज्ञान पाने का
अधिकारी है. जीवन में शम, दम, सदाचार. अहिंसादि गुण हों तभी हम प्रभु का ज्ञान
पाने के योग्य हैं. अंतर में भक्ति और श्रद्धा भी अनिवार्य है, पूर्ण शरणागत होकर
हम जब ब्रह्म के विषय में जानने का प्रयास करते हैं कि उसका स्वरूप कैसा है,
ब्रह्म व आत्मा का क्या सम्बन्ध है, तब सद्गुरु बताते हैं, यह जगत ब्रह्म के
अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है, एक ही सत्ता है जो हमें अनेक होकर भासती है. जब ध्यान
में हम अपनी आत्मा का साक्षात्कार करेंगे तो यह ज्ञान होगा कि हमारी आत्मा भी
निर्लिप्त, चिन्मय और निर्विकार है.
आदरणीया आप सदैव बेहद गहरी जानकारियाँ हमारे साथ साझा करती हैं, कुछ न कुछ न नया सिखाती हैं शुक्रिया।
ReplyDeleteसत्य ।
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
ReplyDeletea truth beyond doubt
ReplyDelete"हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहि बहु विधि सब संता।।"
ReplyDeleteआदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित ग्रन्थ के कुछ
पन्नो का ही पठन हो जाय ...हमारे लिए
बहुत होगा ..बहुत ही अच्छी जानकारी
सादर .......।
अरुण जी, इमरान, राजेश जी, मधु जी व सूर्यकान्त जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसत्य का सटीक आकलन
ReplyDeleteभजगोविन्दम्!
ReplyDeleteविवेक चूड़ामणि से उद्धृत
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गहरी अध्यात्मिक संवाद