Sunday, November 4, 2012

भज गोविन्दम भज गोविन्दम



अक्टूबर २००३ 
आदिगुरु शंकराचार्य कृत ‘विवेक चूड़ामणि’ अद्भुत ग्रन्थ है, अनुपम है, महान है. गुरु और शिष्य के मध्य हुए अद्भुत संवाद के द्वारा वेदांत की शिक्षा प्रदान करने का अनूठा प्रयोग ! षट् सम्पत्ति से युक्त सदाचारी शिष्य ही ब्रह्म ज्ञान पाने का अधिकारी है. जीवन में शम, दम, सदाचार. अहिंसादि गुण हों तभी हम प्रभु का ज्ञान पाने के योग्य हैं. अंतर में भक्ति और श्रद्धा भी अनिवार्य है, पूर्ण शरणागत होकर हम जब ब्रह्म के विषय में जानने का प्रयास करते हैं कि उसका स्वरूप कैसा है, ब्रह्म व आत्मा का क्या सम्बन्ध है, तब सद्गुरु बताते हैं, यह जगत ब्रह्म के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है, एक ही सत्ता है जो हमें अनेक होकर भासती है. जब ध्यान में हम अपनी आत्मा का साक्षात्कार करेंगे तो यह ज्ञान होगा कि हमारी आत्मा भी निर्लिप्त, चिन्मय और निर्विकार है.  

9 comments:

  1. आदरणीया आप सदैव बेहद गहरी जानकारियाँ हमारे साथ साझा करती हैं, कुछ न कुछ न नया सिखाती हैं शुक्रिया।

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।

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  3. "हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहि बहु विधि सब संता।।"
    आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित ग्रन्थ के कुछ

    पन्नो का ही पठन हो जाय ...हमारे लिए

    बहुत होगा ..बहुत ही अच्छी जानकारी

    सादर .......।

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  4. अरुण जी, इमरान, राजेश जी, मधु जी व सूर्यकान्त जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  5. सत्य का सटीक आकलन

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  6. विवेक चूड़ामणि से उद्धृत
    बहुत बढ़िया गहरी अध्यात्मिक संवाद

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