Friday, November 9, 2012

खाली मन में हुआ उजाला


संत राबिया अँधेरे में खोयी अपनी सूई को बाहर प्रकाश में ढूँढती है, लोग हँसते हैं तो वह कहती है “तुम भी तो अपने मन के अँधेरे में जिस सुख को खो चुके हो वहाँ न खोजकर दुनिया की चकाचौंध में उसे ढूँढते हो. मन के अँधेरे को मिटा कर वहाँ प्रकाश करो और वहीं ढूंढो जिसे बाहर ढूँढ रहे हो. स्वयं प्रकाश नहीं मिलता तो सद्गुरु से मांगो.” सद्गुरु हमें भक्ति प्रदान करते हैं, भक्त के कुशल-क्षेम का भार ईश्वर स्वयं उठाते हैं, जब वह संशयों से घिर जाता है, वह उसे भीतर से प्रेरित करते हैं. शरणागत की रक्षा कृष्ण स्वयं करते हैं. हम जिस तरह स्वप्न में तरह-तरह के रूप बना लेते हैं, पर वह वास्तविकता नहीं है, वैसे ही जो यह पल-पल बीत रहा है एक स्वप्न की भांति ही है. इस सत्य का बोध तब हमें होगा जब हम इस सच्चाई को अनुभव में उतारेंगे, अभी तो हमें मानना है तथा जानने का प्रयास करना है. हम जितना अधिक संवेदनशील होंगें उतना ही अधिक गहन हमारा अनुभव होगा. अनवरत प्रयास के बाद हम तीनों अवस्थाओं(जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति) के पार हो ही जाते हैं. यदि हमें अपनी आत्मा को उड़ान देनी है तो उसे ग्रहणशील बनाना होगा, जब हमारे मन का प्याला पूरी तरह खाली होगा तभी हमें कृपा का प्रसाद मिलेगा. खाली होकर ही हम पाते हैं.

5 comments:

  1. बिलकुल सही कहा.....राबिया (अ.) तो खुदा के इश्क में थी उनकी बातें गहन सूफी रहस्यों से भरी होती थी ।

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  2. bahut sundar sarthak baat ....
    aabhar Anita ji ...

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  3. bahut hi umda rachana -sufibad ki yah panki _"shaki ki mohabbt me dil saf hua etna ,jb dil ko dekhta hu shisha nazar aata hai...."

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  4. सार्थक ज्ञान देती पोस्ट,,,
    जब हमारे मन का प्याला पूरी तरह खाली होगा तभी हमें कृपा का प्रसाद मिलेगा.

    RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,

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  5. इमरान, अनुपमा जी, मधु जी, व धीरेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार!

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