अक्टूबर २००३
हर तरह की वेदना से
मुक्ति के उपाय की खोज, बोधि तथा समाधि की प्राप्ति साधक का लक्ष्य है. उपाय की
खोज ही बोधि है. चित्त की निर्मलता ही समाधि है. अपनी भूलों पर वेदना होती है तो
हमारी सजगता बढ़ती है. दुःख हमें सिखाता है, क्रोध, मोह, प्रमाद, आलस्य हमारे ताप
को बढ़ाते हैं. सजगता ही जिसकी एकमात्र औषधि है. थोड़ी सी भी असावधानी हमें वेदना
देती है वही वेदना फिर सजग करती है. वाणी का संयम नहीं सधता तो मुख से कठोर शब्द
निकल जाते हैं. जिह्वा का संयम नहीं सधता तो हम अखाद्य भी खा लेते हैं. मन का संयम
नहीं रहा तो व्यर्थ का चिंतन चलता रहता है. मन जब खाली हो तो सुमिरन स्वतः होता है
जबकि चिंतन बलपूर्वक करना होता है. हमारा हृदय इतना शुद्ध हो कि वहाँ नित्य सुमिरन
चलता रहे, यही समाधि है.
समाधि अवस्था का बेहतरीन चित्रण .सुन्दर विचार बोधि सत्व से .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.......जज़्बात पर भी नज़रे इनायत हो ।
ReplyDeleteहमारा हृदय इतना शुद्ध हो कि वहाँ नित्य सुमिरन चलता रहे, यही समाधि है.
ReplyDeleteबहुत सही
अपनी भूलों पर वेदना होती है तो हमारी सजगता बढ़ती है.,
ReplyDeleteज्ञानवर्धक सुंदर प्रस्तुति,,
recent post...: अपने साये में जीने दो.
वीरू भाई, सदा जी व धीरेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteमन जब खाली हो तो सुमिरन स्वतः होता है जबकि चिंतन बलपूर्वक करना होता है.....बहुत ही सुन्दर ।
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