अक्टूबर २००३
ज्ञान हमें मुक्त करने के लिए है न कि बांधने के लिए, कहीं यह हमारे अहंकार को
बढ़ाने का साधन न बन जाये. इसके लिए हमें सतत् सजग रहना होगा. निरंतर आत्मा का विकास
करते जाने के लिए आवश्यक है कि हम स्वाध्याय कभी न छोड़ें. अभी पथ पर चलना शुरू ही
किया है, फिसलने का भी डर तो बना ही है. संत कहते हैं कि हम अपने दुखों से भी
आसक्ति कर लेते हैं, पुराने किसी दुःख को हम बार-बार याद करते हैं और उसके संस्कार
को दृढ करते जाते हैं. सुखों को हम अन्यों से छिपाते हैं कि हमारा सुख घट न जाये,
हम कितने कृपण हैं. सहन शक्ति भी कम है, हमें कितने छोटे-छोटे सुख-दुख हिला जाते
हैं, हमारी नसें तन जाती हैं, जैसे ही कोई अप्रिय घटना घटे या हमारे मन के विपरीत
कुछ हो तो हमारी वाणी में रुक्षता छलक ही जाती है. हम जो ईश्वर के भक्त होने का दम
भरते हैं, उसके बनाये जगत से ही प्रेम नहीं कर पाते. इसके कण-कण में भी तो उसकी ही
चेतना है. वह परब्रह्म ही सबमें समाया है, वह हमारा जितना है उतना ही सभी का है,
वह अनंत है उसका प्रेम सभी के लिए अनंत है. जो कोई भी उसे प्रेम से पुकारता है, वह
उसकी सुनता है, वह सर्व मंगलकारी है. वह हमारे जीवन को एक अर्थ देता है, वह हमें
एक लक्ष्य प्रदान करता है, स्वयं तक पहुंचने का लक्ष्य.
ज्ञान हमें आत्मा का विकास करने सहायक होता है,,,
ReplyDeleterecent post : प्यार न भूले,,,
हमें कितने छोटे-छोटे सुख-दुख हिला जाते हैं, हमारी नसें तन जाती हैं, जैसे ही कोई अप्रिय घटना घटे या हमारे मन के विपरीत कुछ हो तो हमारी वाणी में रुक्षता छलक ही जाती है. हम जो ईश्वर के भक्त होने का दम भरते हैं, उसके बनाये जगत से ही प्रेम नहीं कर पाते..........bahut sundar
ReplyDeleteधीरेन्द् जी, इमरान, व सदा जी आप सभी का स्वागत व आभार!
ReplyDeleteमन की आँखें खोलने व सत्य का आईना दिखाता ज्ञानवर्धक लेख ।
ReplyDeleteसादर -
देवेंद्र
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