अक्तूबर २००३
माँ काली का रूप भयानक है, उसके पीछे भी एक रहस्य है. यदि उसके प्रति समपर्ण हो तो
भय नहीं रहता, क्योंकि एक ही चेतना प्रेम या भय के रूप में प्रकट होती है, जहां
प्रेम है वहाँ भय नष्ट हो जाता है. जो काली से प्रेम करेगा वह निर्भय हो ही
जायेगा. उसके हाथ में कटा सिर है, अर्थात अहं का नाश करती है. कटे हुए हाथों का
अर्थ है कर्मों का कट जाना. काली कृपा का प्रतीक है, वह मौन है, ज्ञान की अनंत
शक्ति है, वह शिव के ऊपर स्थित होकर ही शांत होती है. शिव ही शांत मौन चेतना है,
उसमें जब ज्ञान शक्ति का उदय होता है तभी वह मंगलकारिणी होती है.
सत्य कहा है आपने अनीता जी आपने माँ को प्रणाम.
ReplyDeleteवाह ... कितनी अच्छी तरह बताया
ReplyDeleteजहां प्रेम है वहाँ भय नष्ट हो जाता है. जो काली से प्रेम करेगा वह निर्भय हो ही जायेगा.
ReplyDeleteबहुत सही
जहां प्रेम है वहाँ भय नष्ट हो जाता है.
ReplyDeleteमाँ को प्रणाम.
इन प्रतीकों में ही हमारी मुक्ति का रहस्य स्थापित है, काश हम उनके सही अर्थों के समय पर समझ स्वयं का उद्धार कर सकते।
ReplyDeleteअरुण जी, रश्मि जी, सदा जी, रमाकांत जी, व देवेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteशक्ति के सभी रूपों में मुझे काली का रूप बहुत पसंद है शुरू से .....बहुत अच्छा लिखा है आपने।
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