अक्तूबर २००३
संत कहते हैं कि उन्हें
और हमें काम ईश्वर से ही होना चाहिए, जगत यदि रूठता है तो रूठने दें. ईश्वर को
भुलाकर जगत को प्रसन्न करने में लगे रहे तो वक्त हाथ से निकलता ही जायेगा, सिर पर
न जाने कितने-कितने विचारों, मान्यताओं और आकाँक्षाओं का बोझ हम ढोते आ रहे हैं, एक
अथाह सागर है हमारा मन. जिसका मंथन करो तो कितना कुछ ऊपर आता है, अमृत की एक बूंद
पाने से पहले व्यर्थ का कचरा ही मिलता है. हमें स्वयं ही पता नहीं चलता कि अगले पल
मन में कुछ देखकर या सुनकर क्या आने वाला है, कैसी बेहोशी में हम जीते हैं.
वातावरण का भी असर होता है और भोजन का भी. ज्ञान ही हमें इससे मुक्त कर सकता है.
मन रूपी अश्व की लगाम पकड़ना ही सत्संग है, यदि हम मन रूपी अश्व की पूंछ पकड़ते हैं
तो कष्ट सहने पड़ते हैं, अभी हम अश्व की पूंछ पकड़े हुए हैं, संत लगाम पकड़ते हैं, उनका
अनुसरण करें तो यात्रा कितनी सहज हो जाती है.
पूर्ण सत्य अनीता जी बहुत सुन्दर
ReplyDeleteयदि हम ईश्वर का अनुसरण करें तो तो जीवन की यात्रा सहज हो जाती है.,,
ReplyDeleteRECENT POST:..........सागर
sundar prastuti
ReplyDeleteबिल्कुल सही
ReplyDeleteअरुण जी, धीरेन्द्र जी, मधु जी व सदा जी आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार !
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा ।
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