अप्रैल २००४
साधक को वाणी के दोष एक-एक
करके दूर करने हैं, पहला दोष है कठोर वाणी, दूसरा है अप्रसंग बात करना, बिना
जानकारी के बात करना, अधिक बात करना, असत्य वचन बोलना. हमारे जीवन में जो भी
कठिनाईयाँ आती हैं उनमें वाणी का बहुत बड़ा योगदान है. वाणी ऐसे भी न हो जिसमें
परनिंदा हो, चुगली हो अथवा तो स्वयं को दुखी करने या होने की बात हो. हमारी वाणी
कौशल्या रूपी बुद्धि से उपजी हो, तभी राम रूपी आनंद का प्राकट्य होगा. रावण रूपी अहंकार
से उपजी वाणी अपने विनाश का ही कारण बनती है.
बिल्कुल सही कहा आपने ...
ReplyDeleteवाणी का उपयोग सतर्कता से ही किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत उपयोगी और सार्थक ।
ReplyDeleteरावण रूपी अहंकार से उपजी वाणी अपने विनाश का ही कारण बनती है.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ...
बिल्कुल सही कहा आपने ..
ReplyDeleteनई पोस्ट
रूहानी प्यार का अटूट विश्वास
सदा जी, मनोज जी, इमरान, रमाकांत जी व उड़ता पंछी जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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