मौन में शांति है. जब अति
आवश्यक हो तभी बोला जाये, तो हम वाणी के कई अपराधों से बच सकते हैं. अधिक बोलने से
हम असत्य भी बोल सकते हैं, पर मन का मौन भी इतना ही आवश्यक है, जितना वाणी का. मन
आखिर सुनाता ही किसको है ? स्वयं को ही सुनाता रहता है. सुने हुए को, कहे हुए को
बार-बार दोहराता है. आत्मा तो उसको सुनना नहीं चाहता, अहंकार को ही सुनाता होगा,
तो यदि भीतर शांति चाहिए तो अहंकार रूपी श्रोता को भगा देना होगा. ध्यान में जैसे-जैसे
हम गहरे जाते हैं, अहंकार से मुक्त होते जाते हैं, तभी शांति का अनुभव होता है.
बहुत ही सुन्दर वाणी,सादर आभार आदरेया.
ReplyDeleteमौन में शांति है.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
बहुत बेहतरीन सन्देश मौन का दर्शन .एहम विसर्जन ,श्रवण सुख से मुक्ति एहम गाथा की .
ReplyDeleteमन आखिर सुनाता ही किसको है ? स्वयं को ही सुनाता रहता है. सुने हुए को, कहे हुए को बार-बार दोहराता है. आत्मा तो उसको सुनना नहीं चाहता, अहंकार को ही सुनाता होगा, तो यदि भीतर शांति चाहिए तो अहंकार रूपी श्रोता को भगा देना होगा. ध्यान में जैसे-जैसे हम गहरे जाते हैं, अहंकार से मुक्त होते जाते हैं, तभी शांति का अनुभव होता है.
ReplyDeleteबा रहा पढने वांचने योग्य अनुकरणीय भाव .
राजेन्द्र जी, रमाकांत जी, वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDelete