मार्च २००४
आत्मा चैतन्य है, चैतन्य ही
स्वयं को जान सकता है, शेष सभी को भी वही जानता है. जो जगा हुआ है वह जानता है कि
वह चैतन्य है. जागने के लिए उद्यम करना होगा. लक्ष्य को भूलना नहीं होगा, ज्ञान ही
हमारी सजगता टिकाने में सहायक है. ज्ञान जब टिकेगा तो पुराने संस्कार भी मिटने
लगेंगे, तब प्रारब्ध भी आयेगा तो छूकर निकल जायेगा. सजगता के लिए ही साधना है,
ध्यान है. जागृत, स्वप्न और निद्रावस्था के मध्य भी कुछ ऐसे क्षण मिलते हैं जो चेतना
का अनुभव कराते हैं. है, ऐसे क्षणों में हमें टिकना है, फिर हम उस चैतन्य को पा
लेते हैं, जहां मन शांत हो जाता है.
"स्व "की शिनाख्त स्व में टिकना बड़ी बात है .
ReplyDeleteआपने सही कहा है, स्व में टिकना बड़ी बात है, छोटी बात हम क्यों करें..
Deleteबहुत ही ज्ञानवर्धक प्रस्तुति,आभार है.
ReplyDeleteमेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
"ब्लॉग कलश"
ब्लॉग कलश के लिए शुभकामना..आपका ब्लॉग देखा है मैंने..
Deleteआपकी पोस्ट मन को बहुत शांति देती हैं अनीता जी
ReplyDeleteस्वागत है आपका राजेश जी..
Delete