Friday, October 31, 2014

नष्टो मोहा स्मृति लब्ध्वा...

अप्रैल २००७ 
यह जीवन क्या है ? सन्त कहते हैं इसका राज जानना है तो खाली होना है. तथाकथित ज्ञान से खाली होना है. बुद्धि के छोर पर जीने वाला हृदय से दूर ही रह जाता है. हृदय के द्वार पर जाने वाला कभी प्रेम से दूर नहीं रहता. प्रेम तभी आता है जब ज्ञान शून्य हो जाते हैं. प्रेम में दो और दो चार नहीं होते. ज्ञान की चरम स्थिति है ज्ञान से मुक्ति ! यह जीवन हमें इसलिए मिला है ताकि हम आत्मा के गुणों को जगत में प्रकाशित कर सकें. जीवन सतत साधना है. हम जीवित हैं क्योंकि आत्मा चैतन्य है, परमात्मा का अंश है. उसका स्वभाव ही जीवित रहना है. वह चेतन है, मरना उसका स्वभाव ही नहीं. अग्नि जैसे अग्नि है, गर्म है. आत्मा वैसे जीवित है. सुना हुआ ज्ञान मन में पूर्ण रूप से समा जाये यही उसकी सार्थकता है. सत्संग में ही इतना उच्च ज्ञान सुनने को मिलता है. बुद्धि के बल पर अर्जित किया गया ज्ञान संसार में सफलता दिला सकता है पर तृप्ति तो वही ज्ञान दे सकता है जो भीतर से उपजा है. वही आत्मा के द्वार पर ले जाने वाला है. यदि हम शाश्वत हैं, नित्य हैं, चेतन है तो हमें  दुःख क्यों होता है, जब हम अपने इस स्वभाव को भुला देते हैं तभी न ! 

6 comments:

  1. बिलकुल सच कहा है..अपने आप को पहचानना ही सबसे बड़ा ज्ञान है...

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  2. मेरे दुखों का कारण ही अज्ञान है इग्नोरेंस है। ज्ञान स्वरूप नित्य आनंद स्वरूप मैं अपने आपको सीमित द्रव्य शरीर मानता हूँ यही मेरी सबसे बड़ी भूल है। मैं सर्वव्यापी चेतना हूँ। देअर इज़ आनली वन एंड वन कोशशन्सनेस एंड नो सेकिण्ड ,कोशशन्सनेस विच इज़ आल परवेडिंग इनफाईनाइट ब्लिस।

    सत्यम ज्ञानम् अनन्तं

    डेट इज़ मी। आईऍम इन्फाईनाइट ब्लिस एंड आल नॉलिज। सुन्दर पोस्ट।

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    1. सत्य और सुंदर वचन वीरू भाई ! आभार !

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    2. अद्भुत है ज्ञान धन्यवाद जी 🙏

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  3. अनमोल - वचन । अनिता जी ! जीवन को दिशा देने के अनूठे मँत्र आप निरन्तर दे रही हैं पर मन है कि प्रलोभन की ओर ही जाने की ज़िद करता रहता है । बताइए अब क्या करें ?

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    1. जीवन तो निरंतर चलने वाली साधना का नाम है शकुंतला जी, मन भी कब तक भागेगा एक न एक दिन तो थक कर शरण में आ ही जायेगा...तब तक प्रार्थना ही हमारा आश्रय है

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