जुलाई २००७
जब जड़ व चेतन मिलते हैं
तभी अहंकार उत्पन्न होता है, जब यह ज्ञान हो गया कि दोनों कभी मिले ही नहीं, मिलने
का भ्रम मात्र होता है तो अहंकार कैसे उत्पन्न होगा. अहंकार के न रहने पर न कोई
कर्ता है न भोक्ता है. जो कुछ हो रहा है वह होना था किन्हीं कारणों वश, जैसे प्रकृति
में सारे काम हो रहे हैं, वैसे ही इन्द्रियां अपने-अपने विषयों में बरत रही हैं.
मन अपना काम कर रहा है, बुद्धि अपना, फिर व्यर्थ ही स्वयं को बंधन में क्यों
मानें.
तिरस्कार कैसे कर दें इस विश्वासी मन का
ReplyDeleteमुक्त न हो पाया अब तक अभ्यासी बंधन का ।
अनिता जी , समझ में नहीं आता , इस मन से निपटें कैसे ?
निपटना नहीं है, यह तो बच्चा है प्यार से मनाना है
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