जुलाई २००७
साधना
के द्वारा मन की शक्तियाँ जब बढती हैं तो दैवीय सत्ता भीतर जगने लगती है. पहली बार
जब हम इस धरा पर आये थे, तो भीतर देवत्व था, वह ढक गया है पर भीतर वह पूर्ण जाग्रत
है, रह-रह कर वह अपनी सत्ता से परिचित कराता है. हमें उसे बाहर निकालना है. हम
देवताओं के वंशज हैं, अमृत पुत्र हैं. सद्विवेक हमारा स्वभाव है. व्यर्थ के
विचारों को यदि सार्थक विचारों में बदल दें तो हमारी क्षमता पांच गुणी बढ़ जाएगी. जब
मन शांत होता है तब परमात्मा के प्रति भीतर सहज प्रेम जगने लगता है. उससे एक संबंध
बनने लगता है. उसके प्रेम से हम सशक्त हो जाते हैं और वह हमें राह दिखाता है. तब
हम संसार के लिए उपयोगी बनने लगते हैं. परमात्मा हमारे द्वारा काम करने लगता है.
मन को कैसे शान्त रखें अनिता जी ! यही तो हो नहीं पा रहा है । अब आप ही कोई उपाय बताइये । हम तो हार चुके हैं ।
ReplyDeleteदो ही तो मार्ग हैं शकुंतला जी, एक प्रेम का दूसरा ध्यान का..या तो मन जहाँ जाये वहाँ उसी को देखें..या ध्यान के द्वारा साक्षी भाव को ग्रहण करें , तब मन चाहे जहाँ जाये उससे पृथक आत्मभाव में रहने से आनंद है. गुरूजी कहते हैं, आत्मा सागर है मन लहरें, लहरें कितनी भी विशाल हों सागर की तुलना में तुच्छ हैं..मन भी आखिर कहाँ तक दौड़ेगा तटस्थ होकर उसे देखें तो स्वयं ही शांत हो जाता है. art of living का बेसिक कोर्स कर लें तो ध्यान सीख सकती हैं. आभार !
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