हमारे मस्तिष्क
का आधा हिस्सा भी हम इस्तेमाल नहीं कर पाते, कोई कहता है कि हम दस प्रतिशत से भी
कम उस क्षमता का प्रयोग करते हैं जो प्रकृति ने हमें दी है. उस दस प्रतिशत में से
भी कितनी तो व्यर्थ ही नष्ट हो जाती है जैसे, व्यर्थ बोलना, नकारात्मक चिन्तन,
नकारात्मक दृष्टिकोण आदि. शक्ति का पूर्ण उपयोग हो सके इसका पहला साधन है पवित्रता
! शुद्ध बुद्धि में शक्ति टिकती है. उस शक्ति का जब हम प्रयोग करते हैं तो और
प्रकटती है. यह सृष्टि न जाने कितनी बार बनी और नष्ट हुई और कितनी बात मानव
ऊंचाइयों पर पहुँचा है और कितनी बार गिरा है. हम आगे बढ़ें यही हमारी नियति है.
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