अगस्त २००७
आत्म निरीक्षण
करने से यह ज्ञात होता है कि जो कुछ हमें मिला है वह समपर्ण के कारण ही मिला है.
गुरू अथवा परमात्मा को जब हम सच्चे हृदय से समर्पण करते हैं तब उनकी कृपा का अनुभव
होता है. हमरे भीतर दृढ संकल्प जगे कि अगले वर्ष में आत्मा को और ज्यादा उजागर
करना है, हमने अपने आप को परमात्मा का सच्चा वारिस बनाना है. मन को शुद्धतर तथा
शुद्धतम करते जाना है, नहीं तो आत्मा हमारे पास होते हुए भी हम उससे दूर ही रह
जायेंगे. भीतर एक ऐसा स्थान है जहाँ जाकर हमें चैन मिलता है तथा वह शांति व चैन
बाहर भी झलकने लगता है. जो बाहर है वही भीतर है पर हम जब तक देह से ऊपर नहीं उठते
हमने भिन्नता लगती है. मन, इन्द्रियों के पार जाने पर ही एकता का अनुभव होने लगता
है. वहाँ दो नहीं हैं. वही हमारा असली धाम है, जो सच खंड है, सत्य लोक है. आज की
भाषा में कहें तो जहाँ मस्ती है, चिल है.
भीतर एक ऐसा स्थान है जहाँ जाकर हमें चैन मिलता है तथा वह शांति व चैन बाहर भी झलकने लगता है......
ReplyDeleteस्वागत व आभार राहुल जी...नव वर्ष की शुभकामनायें...
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