सितम्बर २००७
सतत् होश
रखने की जरूरत है, उस समय तक रखने की जरूरत है जब तक जरा सा भी घास-पात या शैवाल भीतर
रह जाये, जब जरा सा भी घास-पात भीतर न रहे तो होश स्वभाव बन जाता है और यह होश
हमें मुक्त अवस्था में ला देता है. यही जीवन मुक्ति है, इच्छा गति है, इच्छा
भविष्य में है, हम तभी वर्तमान में आते हैं जब कोई इच्छा नहीं रहती. इच्छा काल पर
आधारित है. हम वर्तमान में नहीं रहते, समय को बांटते रहते हैं. इच्छा ही भविष्य है
और स्मृति ही भूत है. समय केवल वर्तमान में है. हम कल्पना और स्मृति में रहकर
वर्तमान को खोते रहते हैं, अपने आप को खो देते हैं. इच्छा हमें अपने आप से दूर कर
देती है.
वर्तमान ही सब कुछ है ... सत्य लिखा है ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार दिगम्बर जी
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