अगस्त २००७
भूख, प्यास से पहले, उनके
बाद, भय, कुतुहल, युद्ध से भागते समय तथा छींक से पूर्व दुखद स्थितियों का भी
उपयोग स्वयं को जानने के लिए कर लेना चाहिए. दुःस्वप्न नींद को तोड़ने के लिए होता
है. शास्त्र कहते हैं क्यों न हम दुखद स्थितियों का उपयोग जागने के लिए कर लें.
दुःख में हम पूर्ण जागरूक होते हैं, सुख में बेहोश होते हैं. उपवास इसलिए है कि हम
स्वयं के पास रहें, जागे रहें, सम्पूर्ण रहें. शरीर के कष्ट के समय हम जागरूक रहते
हैं. छींक के समय जब हम जागरूक होते हैं तो छींक नहीं आती. खाड़ी-खड्ड के मुहाने पर
भी हम सचेत होने का उपयोग कर सकते हैं. तेज गति में हम निर्विचार हो जाते हैं.
खतरे की घड़ी में हम गहन जागरूकता को प्राप्त होते हैं, जीवन की हर परिस्थिति का
साधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है. सतत् बोध रखना है कि ‘मैं हूँ’ !
होशपूर्वक विश्रांति, परिधि पर कुछ न हो रहा हो पर केंद्र पर सब कुछ हो रहा है,
यही ध्यान है !
बहुत सटीक चितन...
ReplyDeleteसतत् बोध रखना है कि ‘मैं हूँ’ ! होशपूर्वक विश्रांति, परिधि पर कुछ न हो रहा हो पर केंद्र पर सब कुछ हो रहा है, यही ध्यान है !
ReplyDeleteकैलाश जी व राहुल जी, स्वागत व आभार !
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