Thursday, January 15, 2015

मुक्त हुआ सो मन निर्मल

अगस्त २००७ 
जब साधक को अपने भीतर एक ऐसे तत्व का पता चल जाता है, ‘जो है’ पर दिखायी नहीं देता, जो सारे शब्दों से भी परे है तो वह शेष नहीं रहता, जो रहता है वह इतना सूक्ष्म है कि उसकी तुलना में मन, बुद्धि आदि इतने स्थूल मालूम पड़ते हैं कि शरण में जाने की बात भी बेमानी लगती है. जो शरण में जायेगा वह स्थूल है और जिसकी शरण में जायेगा वह अति सूक्ष्म है. मन जब तक सूक्ष्म नहीं हो जाता, निर्मल नहीं हो जाता, सारे आग्रहों से मुक्त नहीं हो जाता. सारे द्वन्द्वों से मुक्त नहीं हो जाता, तब तक शरण नहीं हुआ. जब वह इतना सहज हो जाये, इतना पारदर्शी की सबके आर-पार निकल जाये, कोई भी अवरोध उसके सामने अवरोध न रहे, वह जैसे यहाँ रहकर भी यहाँ का न हो, उस सूक्ष्म में तभी प्रवेश हो सकता है. यह निरंतर अभ्यास की बात है, लेकिन धीरे-धीरे यह स्वभाव ही बन जाये, तभी वास्तव में शरणागति घटित होगी, अभी तो हम पल-पल शरण में और पल-पल अशरण में आ जाते हैं.    


2 comments:

  1. मन जब तक सूक्ष्म नहीं हो जाता, निर्मल नहीं हो जाता, सारे आग्रहों से मुक्त नहीं हो जाता. सारे द्वन्द्वों से मुक्त नहीं हो जाता, तब तक शरण नहीं हुआ.....

    ReplyDelete
  2. स्वागत व आभार राहुल जी !

    ReplyDelete