अगस्त २००७
सद्गुरु
तो एक पल में झोली भर देता है, हमारे भीतर जिज्ञासा तीव्र होनी चाहिए ! जब
गुरुकृपा से भीतर परमात्मा प्रकट हो जाता है तो हर पल, हर घड़ी साधक प्रकाशमान हो
जाते हैं, रहते हैं. हर घटना तब शुभ ही होती है, तब बाहरी वातावरण का कोई प्रभाव
नहीं पड़ता. जिधर भी देखें परमात्मा ही नजर आता है, मन जैसे खो जाता है, अहम विगलित
हो जाता है, भीतर कुछ द्रवित होता है, सारा ठोसपना खत्म हो जाता है. प्रेम का
अनुभव होता है तो सारा जगत एक उसी का रूप दिखाई देता है. भीतर-बाहर एक ही सत्ता का
दर्शन होता है, वह दर्शन चौबीस घंटे होता है. अब न कोई दिन है न रात है. आज हुई न
कल है, न स्थान न समय के सापेक्ष है वह दर्शन. वह तो गुरू का प्रसाद है, एक जगी
हुई आत्मा ही दूसरी आत्मा को जगा सकती है. एक जला हुआ दीपक ही दूसरी ज्योति जल
सकता है. जब मन शुद्ध होता है तो परमात्मा उस मन का हरण कर लेता है, उसे परमात्मा
के सिवाय कुछ भी नहीं भाता और उसे खोजने निकल पड़ता है. सद्गुरु ऐसे में परमात्मा
के दूत बनकर आते हैं और भीतर ही उस तत्व का दर्शन करा देते हैं ! सद्गुरु के रूप
में परमात्मा ही आते हैं. एक ही चेतना है, वही तो सबके भीतर भी है. !
bahut sundar vichar ..
ReplyDeleteप्रेम का अनुभव होता है तो सारा जगत एक उसी का रूप दिखाई देता है. भीतर-बाहर एक ही सत्ता का दर्शन होता है, वह दर्शन चौबीस घंटे होता है....
ReplyDeleteउपासना जी व राहुल जी, स्वागत व आभार !
ReplyDelete