जनवरी २००८
मोह के कारण दुनिया में
सारे दुःख हैं. मोह तभी टूटता है जब स्वयं का ज्ञान होता है. परमात्मा की कृपा से
ही यह सम्भव होता है, उसकी कृपा का कोई विकल्प नहीं. लेकिन कोई यदि इस बात का
भरोसा न करे तो उसे धीरे-धीरे ही समझाना होगा. अध्यात्म का मार्ग धैर्य का मार्ग
है. सभी के भीतर वही एक ही सत्ता है, सभी उस कृपा के पात्र हैं. कृपा के अधिकारी
होना भी कृपा है, अधिकारी बनने के लिए जो पुरुषार्थ करते हैं वह भी कृपा से ही
सम्भव है. हम दूसरों को सुधारना चाहते हैं, यह भी मोह के ही कारण है. हमारा आचरण
देखकर यदि कोई बदलने का प्रयत्न करे तो ही हम किसी के जीवन में परिवर्तन ला सकने
में समर्थ हैं, अन्यथा नहीं. हमें जीवन में जिस किसी भी स्थिति का सामना करना पड़ता
है वह हमने स्वयं ही उत्पन्न की है, केवल हम ही उसके लिए जिम्मेदार हैं. ज्ञान को
हमने केवल ओढ़ा हुआ है यदि हर किसी को हम उसे ओढ़ाते चलेंगे. सभी के भीतर वह आत्मा है
तथा सही वक्त की प्रतीक्षा कर रही है. जागने का सही वक्त सभी के जीवन में आता ही
है, आयेगा ही, तब तक उसे हर दौर से गुजरना होगा. हमारी जागृति का पूरा लाभ हम
स्वयं उठा लें, सजग रहें, स्वस्थ रहें, भोजन के प्रति सावधान रहें, वाणी के दोषों
से बचें, स्वाध्याय करें, मनन करें, भीतर रहें, कृतज्ञता अनुभव करें, प्रशंसा
करें, स्वाध्याय करें, सकारात्मक सोचें, कहें, करें, ज्ञान में तभी हम दृढ़ रहेंगे.
अध्यात्म का मार्ग धैर्य का मार्ग है. सभी के भीतर वही एक ही सत्ता है, सभी उस कृपा के पात्र हैं. कृपा के अधिकारी होना भी कृपा है, अधिकारी बनने के लिए जो पुरुषार्थ करते हैं वह भी कृपा से ही सम्भव है.
ReplyDeleteषड् - रिपुओं में इसीलिए तो मोह भी शामिल है ।
ReplyDeleteसुन्दर बोधगम्य रचना ।
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteराहुल जी व शकुंतला जी, स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसाकार प्रस्तुति ...
ReplyDelete