Monday, January 12, 2015

मन के पार ही वह मिलता है

अगस्त २०१४ 
शरीर प्रत्यक्ष है और आत्मा परोक्ष है. जगत प्रत्यक्ष है और परमात्मा परोक्ष है. हम प्रत्यक्ष की तरफ सहज ही आकर्षित हो जाते हैं. जो आत्मा में रमता है उसके भीतर मौन उतर आता है, गहरा मौन. विचार आते हैं पर वे जैसे ऊपर-ऊपर तैरते हैं. नीचे की झील साफ दिखायी देती है, बस चुपचाप इस झील की तलहटी में बिछी ठंडी गीली रेत पर पड़ी सीपियों में से किसी एक पर उसका ध्यान रहता है. सद्गुरु कहते हैं, संसार को किसी का मन नहीं चाहिए, सेवा चाहिए, बस उनका काम होता रहे, मन की किसी को जरूरत नहीं है और यह मन न ही परमात्मा के किसी काम का है, वह तो मन से परे है. ध्यान और प्रेम के मार्ग पर इस मन को विगलित होने देना है. यह अहम् है जो इस मन के बल पर जीता है. ‘मैं’ हूँ तो इच्छा है, डर है, सुख है, दुःख है यदि मैं ही नहीं तो इनमें से कोई भी नहीं और तब मन भी नहीं.


2 comments:

  1. सद्गुरु कहते हैं, संसार को किसी का मन नहीं चाहिए, सेवा चाहिए, बस उनका काम होता रहे, मन की किसी को जरूरत नहीं है और यह मन न ही परमात्मा के किसी काम का है, वह तो मन से परे है......

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  2. स्वागत व आभार राहुल जी !

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