अगस्त २००७
शरीर,
श्वास, मन, प्राण, भाव ये पांच मिलकर हमारा जीवन है. भाव वे सूक्ष्म स्पंदन हैं जो
भीतर से आकर स्थूल देह को संचालित करते हैं. देह प्राण ऊर्जा से ही बलवान बनती है.
प्राण ऊर्जा कम होने पर ही मन बेचैन रहता है. श्वास भी अनियमित हो जाती है. इस
प्राण ऊर्जा को बढ़ाने के तरीके ही धर्म हमें सिखलाता है. प्राणायाम, ध्यान साधना
आदि इसे बढ़ाने के साधन हैं. भाव भी शुद्ध तभी होते हैं जब प्राण ऊर्जा सबल हो. भाव
के अनुसार ही विचार होंगे. मन तब मित्र होगा, कृतज्ञ होगा, जगत में सुख बांटने
वाला होगा. वर्तमान में रहेगा. हर पल आत्मा की सुगंध से भरा होगा. उससे आती शीतल
हवा की छुअन को महसूस करेगा. इस जगत की वास्तविकता को जानने वाला होगा.
भाव भी शुद्ध तभी होते हैं जब प्राण ऊर्जा सबल हो.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर चिंतन.
ReplyDeleteस्वागत व आभार राहुल जी व राजीव जी
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