जनवरी २००८
भक्तियोग
साधन भी है और साध्य भी, अध्यात्म का लक्ष्य है हमारे भीतर परमात्मा के प्रति
प्रेम जगे. इस लक्ष्य को पाने का पहला कदम है हम शांत रहना सीखें. भक्त कभी विचलित
नहीं होता, वह ईश्वर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहता. वह प्रेम के लिए जीता है और
प्रेम के लिए मर भी सकता है. वह व्यर्थ के विवादों में नहीं उलझता, उसके पास इसके
लिए समय ही नहीं है. वह उच्चतम को चाहता है, तुच्छ से उसका कोई प्रयोजन नहीं. वह
अनदेखे के प्रति समर्पित है, उसको हर रूप में देखता है.
सुन्दर रचना । मनुष्य प्रेम - मार्ग में जाकर प्रभु को पा सकता है । वह सर्व - व्याप्त है ।
ReplyDeleteशकुंतला जी, स्वागत व आभार !
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