अगस्त २००७
सर्वोत्तम
पद है मानव का पद ! क्या हमने इस पद की शपथ ग्रहण की है ? इस शपथ में हमें
नकारात्मक भाव से मुक्त रहना, कटु वचन नहीं कहना तथा सभी को प्रेम देना इन तीनों
बातों को शामिल करना है. हमें इस शपथ रूपी संकल्प की छत बनानी है ताकि कोई विकार
प्रवेश न कर सके. व्रत लेने से मन खाली रहता है, यह व्यर्थ की बातों से नहीं भरता.
नया कार्य, नई कल्पना, नया चिन्तन तभी मन में आ सकती है जब पुराना वहाँ न हो. जगह
हो. जब मन ख़ाली होता है तो आत्मा मुखरित हो जाती है. मन बाह्य संसार से ही विकारों
को ग्रहण करता है यदि व्रत रूपी छत या आवरण रहे तो विकारों की वर्षा से हम बच सकते
हैं. अनावश्यक बातों को त्याग कर आवश्यक को ही हम ग्रहण करें तो कितनी ऊर्जा बचा
सकते हैं फिर वही ऊर्जा भीतर जाने में सहायक होती है और हम मनुष्यत्व के पद की
प्रतिष्ठा तभी बनाये रख सकते हैं.
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (16.01.2015) को "अजनबी देश" (चर्चा अंक-1860)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteअनावश्यक बातों को त्याग कर आवश्यक को ही हम ग्रहण करें तो कितनी ऊर्जा बचा सकते हैं फिर वही ऊर्जा भीतर जाने में सहायक होती है और हम मनुष्यत्व के पद की प्रतिष्ठा तभी बनाये रख सकते हैं.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमकरसंक्रान्ति की शुभकामनायें