जुलाई २००७
हमारी
साधना इस जन्म में जहाँ तक पहुंचती है, अगले जन्म में वहीं से आरम्भ हो जाती है.
हमारी साधना का एक मुख्य भाग है किसी को भी दोषी नहीं देखना, यदि हम किसी को दोषी
मान लें तो फौरन मन को निर्मल कर लेना चाहिए ! हर पल हमारी ऊर्जा रिस रही है
क्योंकि हम अज्ञानावस्था में रहते हैं, स्वयं को देह मानते हैं. जब ज्ञान होता है
और स्वयं को आत्मा मानते हैं तब हमारी ऊर्जा नहीं घटती. जिसकी भाव शुद्धि हो गयी
है उसको मृत्यु का भय नहीं सताता.
सच है जब हम अध्यात्म मार्ग पर चल पड़ते हैं तो वह रास्ता और संस्कार कभी नष्ट नहीं होता अगले जन्म में यात्रा आगे बढ़ती है उसी जगह से। बढ़िया प्रस्तुति जो जान गया -मैं सीमित शरीर नहीं हूँ ,सनातन अस्तित्व ,सनातन चेतना तथा सनातन ज्ञान हूँ वह सीमित से अनंत हो जाता है वैकुण्ठ को प्राप्त होता है आवागमन चक्र से मुक्त हो जाता है।
ReplyDeleteस्वागत व आभार वीरू भाई
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