२२ जून २०१७
हमारा मन कभी वर्तमान में रहता नहीं और परमात्मा को अतीत या भविष्य में मिला नहीं
जा सकता, सो कभी मिलन घटता ही नहीं. जैसे कोई किसी के पड़ोस में रहता है, पर जब वह
काम पर जाता है, दूसरा सो रहा होता है और पहले के वापस आने तक उसकी शिफ्ट आरम्भ हो
चुकी होती है, तो महीनों क्या वर्षों तक वे दोनों एक—दूसरे से नहीं मिल सकते.
परमात्मा भी हमारा निकटतम है, पर क्यों कि जब वह मिल सकता है, हम वहाँ होते ही
नहीं, जीवन बीत जाता है हम अजनबी ही बने रहते हैं. जब कोई किसी कार्य में तत्परता
से लगा है, अतीत या भावी की कोई स्मृति या कल्पना तो दूर उसे यह भी ख्याल नहीं कि
वह है, तब चुपके से परमात्मा आ जाता है और उसके काम में सहयोग करता है, तभी तो
तल्लीनता में एक अपरिमित सुख का अनुभव होता है.
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