१८ जून २०१७
हमारा मूल स्वभाव शांति, प्रेम और आनंद है, किसी को भी अशांत रहना पसंद नहीं, कोई
उससे नफरत करे यह भी कोई नहीं सह सकता और दुःख से बचने की सहज ही हरेक के भीतर
प्रवृत्ति होती है. नन्हा शिशु सहज ही प्रसन्न होता है, उसके प्रति अपने-पराये सभी
का प्रेम उमड़ता है और छोटा सा दुःख आने पर वह रो-रोकर उससे छुटकारा पाने के लिए
गुहार लगता है. जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, छोटी-छोटी बातों पर अशांत होना
सीख जाते हैं, प्रेम का अर्थ हर समय दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना मानने
लगते हैं, अपनी ख़ुशी के लिए वस्तुओं का आश्रय लेने लगते हैं. समय के साथ-साथ हमारा
मूल स्वभाव कहीं नीचे दब जाता है, वस्तु, व्यक्ति अथवा परिस्थिति से ये चीजें मिल
ही नहीं सकतीं, इसका ज्ञान जब तक होता है तब तक तो हम अपने स्वभाव को भूल ही चुके
होते हैं. अब शांति, प्रेम, आनंद के लिए हम परमात्मा से गुहार लगाते हैं. जीवन में
सत्य की खोज आरम्भ होती है.
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