२० जून २०१७
जीवन वास्तव में एक खोज का ही नाम है. बाहर की हर खोज के माध्यम से वास्तव में
मानव को अपनी ही खोज करनी है. यह सृष्टि कितनी पुरानी है, कोई नहीं जानता. यहाँ
कुछ भी नया नहीं है, फिर भी सब कुछ हर पल नया सा जान पड़ता है. वास्तव में सब कुछ
मानव पहले कितनी ही बार अनुभव कर चुका है, पर हर बार एक शिशु जब आँख खोलता है तो
उसके लिए यह जगत कितने रहस्यों से भरा होता है. पहले परिवार फिर विद्यालय उसकी
जिज्ञासाओं को शांत करता है, जिन्हें यह अवसर नहीं मिल पाता, वे बच्चे अविकसित ही
रह जाते हैं, उन्हें अपने भीतर की सम्भावनाओं को खोजने का अवसर ही नहीं मिल पाता.
हर किसी के भीतर एक न एक प्रतिभा छिपी है, जिसे अवसर की तलाश है, किन्तु उसका भान
किसी–किसी को ही हो पाता है. हम स्वयं से ही अपरिचित रह जाते हैं, और यही पीड़ा
विभिन्न रूपों में जीवन में कितनी बार नये-नये रूप लेकर आती है.
सुन्दर विचार ... अनमोल ...
ReplyDeleteपायेगा ,लेकिन गहरे पानी में पैठना होगा.
ReplyDeleteसही कहा है आपने, ऊपर-ऊपर की खोज नहीं वास्तविक भीतर की खोज..आभार प्रतिभा जी !
Deleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
ReplyDeleteयह बहुत गहरी सोच है जो जीवन की खोज में जुटी रहती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार ----
सुंदर विचार
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