५ जून २०१७
पृथ्वी को हम माँ कहते हैं. उसी से हम जन्मे हैं और एक दिन उसी में हमारे भौतिक
अवशेष लीन हो जाने वाले हैं. पृथ्वी के उपकारों को याद करना आरम्भ करें तो उनका
अंत ही नहीं आएगा. हमारे वस्त्र, मकान, भोजन सभी कुछ तो उसी से मिला है. जल को भी वही
धारण करती है और अग्नि को भी अपने उदर में वही धारण किये हुए है. हजारों तरह के जीव-जन्तु,
पेड़-पौधे, हीरे-जवाहरात और खनिज लवण क्या नहीं है उसके आश्रय में. मानव ने पृथ्वी
के साथ कैसा अमानवीय व्यवहार किया है, यह किसी से छिपा नहीं है. जंगल नष्ट किये जा
रहे हैं, हवा को प्रदूषित किया जा रहा है, जल को भी पीने योग्य नहीं छोड़ा है. मानव
का अज्ञान उसे किस ओर ले जा रहा है वह अपनी बेहोशी में यह भी नहीं देख पा रहा है. विश्व
पर्यावरण दिवस हमें जागने के लिए मजबूर करता है, यदि हम अब नहीं चेते तो आने वाली पीढ़ी
को जन्म से ही रोगों का सामना करना पड़ेगा. आज भी प्रदूषण के कारण रोगों की संख्या
बढती जा रही है. योग युक्त जीवन शैली अपना कर हम पुनः इस धरा को हरा-भरा बना सकते
हैं.
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