२७ जून २०१७
हमारा छोटा मन कभी भी संतुष्ट नहीं होता, उसे जितना मिले उस पर वह अपना अधिकार ही
मानता है. कृतज्ञता की भावना उसमें नहीं होती. उसे प्रेम भी मिलता है तो वह उसे
अपनी योग्यता मानता है अथवा तो उसके प्रति उदासीनता दिखाता है. जीवन में जितने भी
दुःख अथवा कष्टों का अनुभव हमें होता है वह इसी छोटे मन के कारण. हमारे ही भीतर एक
विराट मन भी है, जहाँ कोई अपूर्णता नहीं, जो सदा तृप्त है, जो सृष्टि की हर वस्तु
के प्रति हर क्षण कृतज्ञ है. जिसे देह, मन, बुद्धि आदि भी ईश्वर का एक उपहार लगता
है, जिसके माध्यम से वह जगत को देख, सुन सकता है. साधना के द्वारा हम छोटे मन से
ऊपर उठकर विराट से जुड़ते हैं. हम देने के भाव से भर जाते हैं. उत्साह, सृजनात्मक
शक्ति, उदारता, प्रेम, कृतज्ञता, अभय, सजगता और आनंद हमारे स्वभाव में झलकने लगते
हैं.
जी बहुत बढिया और उत्तम जानकारी दी है आपने अपने अंदर अंतर आत्मा में छूपे विराट के सबंध मे धन्यवाद।
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