२१ जून २०१७
हमारे अस्तित्त्व के कई स्तर हैं, कोई भी व्यक्ति अंतिम स्तर तक भी जा सकता है और
केवल पहले पर ही रह कर पूरा जीवन बिता सकता है. देह के स्तर पर अन्य जीवों और
मानवों में ज्यादा भेद नहीं है, मन के स्तर पर मानव मनन चिंतन कर सकता है जो अन्य
प्राणी नहीं कर सकते. आत्मा के स्तर पर मनुष्य अपने भीतर आनंद और शांति के स्रोत
से जुड़ सकता है. उसे पूर्ण स्वाधीनता और प्रसन्नता का अनुभव इसी स्तर पर होता है.
योग ही इसका एकमात्र उपाय है. योग का अर्थ है जुड़ना, व्यष्टि का समष्टि से जुड़ना अथवा
तो मन का आत्मा से जुड़ना. इसका आरम्भ देह से होता है, फिर श्वास की सहायता से मन की
गहराई में जाकर व्यक्ति को जगत के साथ एकत्व का अनुभव होता है. योग को केवल कुछ आसनों
तक ही सीमित कर देना ऐसा ही है जैसे शिक्षा का उपयोग मात्र जीविकापार्जन के लिए
करना.
योग की उत्तम परिभाषा
ReplyDeleteस्वागत व आभार दीदी !
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
Deleteयोग का अर्थ होता है, शाश्वत सत्य परब्रह्म ईश्वर अंश(अन्न श्वास से बनते प्राण से टीका जड शरीर मे रहता) अविनाशी जीव को मस्तिष्क के आकाश तत्व के खाली जगह मे ले जाना और अपने आपको ८४ लाख योनिमें से मुक्त करना है।
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