७ जून २०१७
बादल बरस रहे हैं
जैसे, कृपा बरसती प्रभु की वैसे
भीगा जैसे घर का
आँगन, भीगे वैसे अंतर उपवन !
परमात्मा की कृपा का
अनुभव साधक को हर घड़ी होता है, पर उस कृपा को सुवास बनाकर बाहर बिखेरना भी तो आना
चाहिए. जैसे धरती जल लेकर सुवास देती है, वैसे ही कृपा के जल से भीगा हुआ मन प्रेम
के गीत रचे. सुनहले शब्दों की चादर बुने, मोती से वचन कहे, जिसे हंस चुगें. धरा
देती है, गगन देता है, प्रकृति देती है और मानव भरे जाते हैं भीतर. पाना ही उनका
लक्ष्य है, पाकर वे उसे व्यर्थ कर देते हैं.
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