१४ जून २०१७
सुबह से शाम तक न जाने कितनी बार हम जाने-अनजाने भगवान का नाम लेते रहते हैं. किसी
कठिनाई में फंस जाएँ तब तो उसके नाम का जप भी शुरू हो जाता है. कुछ अच्छा हो जाये
तो उसको धन्यवाद देते हैं और न हो तो उससे शिकायत भी करते हैं, किंतु कभी बैठकर उसकी
नहीं सुनते. एकतरफा संवाद ही चलता रहता है और हम अपनी मर्जी से जीवन को जीये चले
जाते हैं. इसका अर्थ हुआ जिस भगवान के बिना हमारा जीवन चल ही नहीं सकता, वह हमारी
कल्पना में ही है. बचपन से जो भी हमने सुना है, किताबों में पढ़ा है और कुछ हमारी
स्वयं की धारणाओं के अनुसार एक छवि हमने गढ़ ली है और भगवान व हम स्वयं दो समानांतर
रेखाओं की तरह चलते चले जाते हैं, जिनके मिलन की कोई गुंजाइश ही नहीं है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व रक्तदान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
ReplyDelete