१९ सितम्बर २०१८
भक्तिकाल के महान संत कवि
श्री शंकरदेव जी की जयंती आज पूरे असम प्रदेश में श्रद्धा के साथ मनाई जा रही है.
सूर, तुलसी, कबीर जिस तरह उत्तर भारत में आस्था और सम्मान के साथ स्मरण किये जाते
हैं वैसे ही शंकर देव असम में पूजनीय हैं. इनके लिखे बोर गीत नामघर में, जो यहाँ
के मन्दिर हैं, जन-जन के अधरों पर नित्य ही सुशोभित होते हैं. यहाँ मूर्तिपूजा
नहीं होती, परमात्मा के नाम का ही गान किया जाता है. शंकरदेव कवि, नाटककार,
संगीतकार और संस्कृत के महान विद्वान् थे. इन्होने भागवद् पुराण का असमिया भाषा
में अनुवाद किया, इसी ग्रन्थ को नामघर में वेदी पर रखा जाता है. वैष्णव संप्रदाय
को मानने वाले शंकर देव ने ‘एक शरण’ नामसे एक नये पन्थ की स्थापना की. उस समय असम
में तरह-तरह के अन्धविश्वास फैले थे और बलिप्रथा का बहुत प्रचार था. समाज को एक
नये अहिंसावादी धर्म का मार्ग दिखाकर उन्होंने एक क्रांतिकारी कदम उठाया, उस समय
उन्हें काफी प्रतिरोध भी झेलना पड़ा, किंतु वे हर परीक्षा में उत्तीर्ण हुए. उस समय
से आजतक असम के साहित्य, नाट्यकला, गीत-संगीत
पर शंकरदेव का गहरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है.
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