१२ सितम्बर २०१८
जो भी अभाव प्रतीत होता है, वह प्रकृति में है, चैतन्य पूर्ण
है, लेकिन वहाँ सदा नहीं रहा जा सकता. उस पूर्णता को हृदय में भरकर रहना तो इसी
प्रकृति में है. गणेश पूजा का उत्सव इसी बात का स्मरण कराता है. देवता को पूजा के
स्थान पर बैठाकर उसकी आराधना करनी है फिर उससे वरदान पाकर जीवन को भर लेना है और
अंत में देवमूर्ति को भी विसर्जित कर देना है. गणेश शुभता के प्रतीक हैं, ज्ञान और
विवेक के भी. वे विघ्न हर्ता हैं और मंगलकारक भी. हमें अपने जीवन में उनकी
उपस्थिति हर पल चाहिए. शुभ की कामना करते हुए यदि हम ज्ञान धारण करें, वही
मंगलकारी हो सकता है. वास्तविक ज्ञान हमें विनम्र बनाता है. गणपति के हाथ में मोदक
है अर्थात आह्लाद और उल्लास सदा उनके अपने हाथ में है, उसके लिए कहीं जाने की
आवश्यकता नहीं है. जिस दिन हमारा सुख भी सदा अपने पास ही नजर आने लगेगा, उसी दिन
हमें गणपति की पूजा का फल मिला है, ऐसा मानना होगा. गणेश के रूप की हर बात कुछ न
कुछ संदेश अपने पीछे छिपाए है. हमें उन संदेशों को गुनना है और स्वयं तथा जगत के
लिए मंगल कामना करनी है.
गहन विचार प्रस्तुत करती रचना
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