२९ सितम्बर २०१८
दिन उगता है और
समाप्त हो जाता है, रात्रि के आँचल में प्रकृति शांत होकर सो जाती है. हम भी दिन
भर के कार्यों के बाद देह और मस्तिष्क को विश्राम देने के लिए सो जाते हैं. नींद
में हम कहाँ होते हैं, किसी को नहीं पता, गहरी निद्रा में न किसी को अपने होने का भान
रहता है, न अपने ज्ञान और ऐश्वर्य का, उस समय राजा और रंक मानो एक हो जाते हैं. नींद
में ही स्वप्न काल भी होता है, कभी अतीत के कभी भविष्य के और कभी अपने वर्तमान
जीवन से जुड़े विचार स्वप्न बनकर हमें दिखाई पड़ते हैं. जागृत अवस्था में जो मन में संकल्प
उठते हुए देखता है, स्वप्न अवस्था में जो दृश्य देखता है, निद्रा में जो सुख का
अनुभव करता है, वह द्रष्टा स्वयं अनदेखा ही रह जाता है. संत कहते हैं, इतने बड़े
मायाजाल का एक ही प्रयोजन है उस मायापति से नाता जोड़ लेना जो इस द्रष्टा को चेतना
प्रदान करता है. नवरात्रि का उत्सव इसी संदेश को लेकर बार-बार आता है, शक्ति की
उपासना करके हम शिव तक पहुँचें.
https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/09/blog-post_30.html
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रश्मिप्रभा जी !
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