२७ सितम्बर २०१८
भगवद् गीता में कृष्ण कहते
हैं, कर्म पर हमारा अधिकार है, फल पर नहीं. इसका एक अर्थ यह भी है कि हमें सदा
कर्मशील रहना है. शास्त्रों में नियत कर्म, नियमित कर्म, निमित्त कर्म आदि की
चर्चा की गयी है. नियत कर्म के अनुसार प्रत्येक मानव का पहला कर्त्तव्य है स्वयं
के तन की समुचित देखभाल. उसकी शुद्धि, उचित आहार व व्यायाम के द्वारा उसे स्वस्थ
रखना. दूसरा है आजीविका के लिए कर्म करना, जो बच्चे अथवा वृद्ध हैं और जो गृहणियाँ
हैं, क्रमशः उनका कर्त्तव्य है शिक्षा प्राप्त करना, समाज को सही मार्गदर्शन देना
और घर चलाना. नियमित कर्म के अनुसार सभी का कर्त्तव्य है परमेश्वर के प्रति
धन्यवाद और कृतज्ञता का ज्ञापन करना. इसमें प्रार्थना, ध्यान, जप, योग, साधना व्रत,
उपवास, उत्सव आदि सभी उपाय समयानुसार समाहित हो जाते हैं. इन्हें त्रिकाल संध्या
के रूप में हमारे शास्त्रों में नियमित करने का विधान है. हम देह रूप से परमात्मा
से पृथक हैं पर आत्मा रूप से उससे अभिन्न हैं, इस भाव का अनुभव किये बिना
प्रार्थना पूर्ण नहीं होती. निमित्त कर्मों में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक के
संस्कार तथा श्राद्ध आदि आ जाते हैं. यदि हमारा जीवन इन शुभ कर्मों से भरा रहे तो
व्यर्थ के कर्म अपना आप ही विदा ले लेंगे और दुखरूप फल से हम मुक्त हो जायेंगे.
धर्म के द्वारा अर्थ और कामनाओं की सिद्धि में ही मोक्ष का अनुभव छिपा है.
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