Thursday, September 6, 2018

टिका रहे उत्साही मन जब


७ सितम्बर २०१८ 
जगत परिवर्तनशील है, मन भी परिवर्तनशील है. सदा सत, रज और तम में डोलता रहता है. प्रारब्ध के अनुसार कभी भीतर सत प्रबल रहता है कभी रज या तम. पुरुषार्थ करके इसे सदा सत में स्थित रखना है, और फिर इसके भी पार निकल जाना है. पुरुषार्थ प्रतिदिन करना होगा, जैसे घर में रोज ही सफाई होती है, तन का नित्य ही स्नान होता है, ऐसे ही मन को सत में टिकने का प्रयास भी सतत करना होता है. मन किस अवस्था में है इसका भान साधक को तत्क्षण हो जाता है, जब भी भीतर असहजता का भान हो, स्वर में हल्की सी भी तल्खी आ जाये, तो समझ में आता है तमस या रजस बढ़ा हुआ है. किसी दिन सुबह नींद से जगने के बाद भी भीतर स्फूर्ति का अनुभव न हो तो भी जानना चाहिए कि तमस की अधिकता है, और अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है, वरना कर्मों और संबंधों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा. संबंध दर्पण की तरह हमारे मन का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करते हैं. जिस दिन ऐसा लगे कि मधुरता खो रही है, सजग होकर सत्व में टिकने का प्रयास करना चाहिए. जीवन का सौन्दर्य एक क्षण के लिए भी मिटता नहीं है, बस उसे निहारने वाली चेतना चंचलता या जड़ता से धूमिल हो जाती है.  

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