२२ सितम्बर २०१८
भारत का सर्वपूज्य
ग्रन्थ भगवद् गीता कृष्ण और अर्जुन के संवाद पर आधारित है, जो युदद्ध क्षेत्र में
घटा था. इसके पीछे एक रहस्य है. वास्तव में एक साधक का जीवन योद्धा की भांति होता
है. एक योद्धा अनुशासित, वीर, निर्भय और स्वालम्बी होता है, युद्ध करते समय उसे तत्काल
निर्णय लेने होते हैं. उसे प्रतिपल सजग रहना होता है, वह अपने शत्रुओं को पहचानता
है और उसे अपनी क्षमता का भी भान होता है. युद्ध क्षेत्र में उसकी छोटी सी
असावधानी भारी पड़ सकती है. एक साधक को भी जीवन के कर्मक्षेत्र में सजग रहकर आलस्य,
प्रमाद, पंच विकार अदि शत्रुओं से युद्ध लड़ना होता है. जो वस्तुएं उसके मार्ग में
बाधक हैं, उनका प्रबल विरोध करके ही वह अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है. हम सभी किसी
न किसी रूप में ईश्वर की भक्ति, आराधना, योग, ध्यान आदि करते हैं, किन्तु अंतिम
लक्ष्य हमसे दूर ही बना रहता है. इसका सबसे बड़ा कारण है हम अपने शत्रुओं को अपना
निजी संबंधी मानकर उन्हें नष्ट करने से मना कर देते हैं. जैसे अर्जुन अपने
गुरुजनों, पितामह आदि को मारना नहीं चाहता था, जबकि वह भली-भांति जानता था कि वे
उसके शत्रुओं से मिले हुए हैं. जब तक हम शुभ को पूर्ण स्वीकार कर अशुभ को अपने
जीवन से पूर्ण तिलांजलि नहीं दे देते, हमारा जीवन पूर्ववत् ही बना रहता है, चाहे
हम कितने ही जप-तप कर लें.
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