Monday, September 10, 2018

कबीर मन निर्मल भया


११ सितम्बर २०१८ 
जीवन में प्रतिपल प्रसाद बंट रहा है, प्रसाद का एक अर्थ है प्रसन्नता. निर्मलता और कृपा भी इस उल्लास में शामिल हैं, यह प्रसाद बिना किसी पात्रता के बंटता है, सब पर समान रूप से, बशर्ते कोई इसके लिए उत्सुक हो. जब जीवन में सत्य को जानने की प्यास जगे, किसी जागे हुए संत के प्रति श्रद्धा का भाव जगे और स्वयं को सदा सर्वदा आनंदित देखने की चाह जगे तो समझना चाहिए कि इसी प्रसाद की तलाश है. सुबह से शाम तक हम कितने ही कार्य देह के लिए करते हैं, मन के रंजन के लिए भी हर कोई कुछ न कुछ समय निकाल ही लेता है, पर उसके लिए जो इस देह और मन को चलाता है, जिसके कारण ये दोनों हैं, जो देह के द्वारा जगत में कार्य करता है और मन के द्वारा चिंतन-मनन करता है, उसकी तरफ ध्यान ही नहीं जाता. उसी को इस प्रसाद की आवश्यकता है. नियमित योग साधना और ध्यान से हम उससे परिचित होने लगते हैं और एक दिन उस कृपा को अनुभव भी करते हैं जो प्रतिपल बरस रही है.   

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