१५ सितम्बर २०१८
जगत का आधार है
प्रेम, अपने शुद्ध रूप में प्रेम ही परमात्मा है. जीव जगत में प्रेम के कितने ही
अनुपम रूप देखने को मिलते हैं. चकोर का चाँद के प्रति प्रेम, चातक का स्वाति
नक्षत्र में गिरने वाली वर्षा की बूंद के प्रति प्रेम, पतंगे का दीपक के प्रति
प्रेम और सूर्यमुखी का सूर्य के प्रति प्रेम का बखान करते हुए गीत कवियों ने गाये
हैं. जैसे परमात्मा अनंत है वैसे ही प्रेम की गहराई को कोई माप नहीं सकता. हर
आत्मा में वह प्रेम छुपा है जो वह कितना ही लुटाये समाप्त नहीं होने वाला, फिर भी
हम अपने आसपास हिंसा और शोषण होते हुए देखते हैं. अपने भीतर के हीरे को जिसने
तराशा नहीं वह उसे कोयला समझ कर व्यर्थ ही जलता और जलाता है. प्रेम की यह अनमोल
संपदा जिसके पास है वह अकिंचन होते हुए भी तृप्त रहता है.
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