Monday, September 24, 2018

श्रद्धा से जो श्राद्ध करे


२४ सितम्बर २०१८ 
जीवन रहस्यपूर्ण है, हम कितना भी जान लें, अनंत जाने बिना ही रह जाता है. ऐसा मान लेने में ही शांति का अनुभव होता है कि हम कुछ भी नहीं जानते. अभी पितृ पक्ष आने वाला है. हमारे पूर्वज जो अब देह में नहीं हैं, उन की याद में हम श्राद्ध करते हैं. अन्नमय कोष तो मृत्यु के क्षण में ही नष्ट होने लगता है, उसे जला दिया जाता है. सूक्ष्म शरीर जो प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय कोष हैं, वे नष्ट नहीं होते. प्राणमय शरीर ऊर्जा से बना है. मनोमय विचारों से बना है. विज्ञानमय कोष ज्यादा सूक्ष्म है, वह हमें परमात्मा से जोड़ता है. वह मृत्यु के बाद भी बना रहता है और परलोक या पितृ लोक में गमन कर जाता है. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज इस भूलोक पर आते हैं और यदि हम उनकी स्मृति में दान, श्राद्ध व तर्पण करते हैं तो हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. विचारपूर्ण दृष्टि से देखें तो यह एक सुंदर प्रथा है, पर पंडितों और पुरोहितों ने इसे लोभ के कारण ऐसा बना दिया है कि आज की पीढ़ी इससे दूर होती जा रही है. हमारे पूर्वजों को वर्तमान पीढ़ी से जोड़े रखने के लिए, अपनी परंपराओं को जीवित रखने के लिए, पशु-पक्षियों और समाज के दीन-हीन जनों को दान के रूप में कुछ सहायता देने के लिए यह प्रथा हमारे लिए अत्यंत लाभदायक है. जिनके कारण हम इस समय हैं अपने उन तीन पीढ़ी तक के पूर्वजों को प्रेम से स्मरण करते हुए उनके लिए कुछ करने की भावना के साथ जब हम श्राद्ध करते हैं तो उनका ही नहीं देवताओं का आशीर्वाद भी हमें सहज ही प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है.

5 comments:

  1. https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/09/blog-post_24.html

    ReplyDelete
    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

      Delete
    2. बहुत बहुत आभार रश्मिप्रभा जी !

      Delete
  2. सुप्रभात
    एक बात पूछनी हैं
    श्राद्ध हमेशां कौवों को डाला जाता है लेकिन मेरे दादा दादी जी को ये कवे बिलकुल पसंद नहीं थे. फिर उनकी आत्मा इन दिनों इन कोवों में कैसे घुसती होगी?
    पता नहीं क्यों लेकिन ये सिर्फ मेरे दादा दादी जी की ही बात नहीं है कवे किसी भी इन्सान को पसंद नहीं हैं.
    पुरे साल आत्मा भूखों मरे और केवल एक बार भोजन कराओ...ये भी बात अत्याचार सी है :)
    या फिर ये बात भी सोचने लायक है की आत्मा को भी भूख लगती है.
    या ये बात कि जो आत्मा हमारे पूर्वजों में थी उनका पुनर्जन्म नहीं हुआ और साल में एक बार कौवों के माध्यम से भोजन मिलने का इन्तजार कर रहें हैं.
    अभी तक ये रिवाज मुझे तर्कहीन लगती है..बेशक पंडितों ने इसे बिगाड़ने में कोई कमी नही छोड़ी होगी...
    अगर आपके पास इस रिवाज के पीछे मनघडंत कहानी के अलावा सही fact हैं तो प्लीज़ साँझा करें.
    हो सकता है मुझे भी इस रिवाज में कोई कमी महसूस न हों.
    मेरी ईमेल rohitasghorela@gmail.com

    ReplyDelete
    Replies
    1. कौवे तो एक प्रतीक मात्र है, या कहा जाये जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं. आप जो भी भोजन उनके लिए रखेंगे, उसे अन्य पक्षी भी ग्रहण करते हैं. किसी के मन में कौवे के प्रति जो द्वेष की भावना है उससे कौवे की कोई हानि नहीं होती, खुद द्वेषी की होती है, इससे उन्हें बचाने के लिए कौवे को ऋषियों ने मान्यता दिलाई होगी.
      कम से कम वर्ष में एक बार तो हम उन्हें याद करें, वरना दादाजी की तस्वीर पिछले कमरे में चली जाती है और परदादा जी का तो नाम भी याद नहीं होता.
      यकीनन उन्होंने नया जन्म ले लिए होगा, किन्तु वह आत्मा जहाँ भी होगी उसके प्रति भेजी शुभकामनायें उन्हें छू ही लेती हैं.
      यह रिवाज यदि श्रद्धा पूर्वक प्रेम से मनाएं और भावपूर्ण हृदय से मनाएं तभी इसका कोई अर्थ है.

      Delete