जब मन शुद्ध हो, हृदय में प्रेम हो, शरणागति ले ली हो, कोई चाह शेष न रहे, ध्यान
में मन टिक गया हो, और मन से भी परे चले जाएँ तब अनहद नाद भीतर सुनाई पड़ता है.
घंटा ध्वनि, चिडियों का कलरव, कभी झींगुर की सी आवाज और कभी सोहम् की गूंज स्पष्ट
सुनाई देती है. ‘अनहद की धुन प्यारी’ संतों ने गाया है और तब भीतर कैसा रस टपकता
सा प्रतीत होता है. एक मधुरता सी छाने लगती है, मदहोशी सी, पर पूरा होश वहीं है.
जगत में तो हम कई बार होश गंवा बैठते हैं, जब विकार हमें घेरते हैं, सत् के मार्ग
से भटक जाते हैं. ध्यान में यदि होश कायम रहे तो जीवन में भी आने लगता है. और जीवन
यदि होशपूर्वक जीया जाये तो ध्यान भी सफल होने लगता है.
ध्यान भी सफल होने लगता है.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ... आभार
गहन चिन्तन ....
ReplyDelete"घंटा ध्वनि, चिडियों का कलरव, कभी झींगुर की सी आवाज और कभी सोहम् की गूंज स्पष्ट सुनाई देती है." बिल्कुल सच
सदा जी व अंजनी जी आपका स्वागत व आभार !
ReplyDeleteअभी ऐसा घटा नहीं है.....ईश्वर ने चाह तो अपना अनुभव बनेगा ।
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