१४ मार्च २०१८
हर कोई चाहता है इक मुठ्ठी आसमान...यह गीत शायद आपने भी सुना
होगा. कभी-कभी इन गीतों में कितनी गहरी बात मिल जाती है. क्या हममें से हर किसी की
यही चाहत नहीं है. हर मन के भीतर जो एक तलाश चल रही है, वह इसी अपनेपन से भरे
उन्मुक्त आकाश की ही तो है. शास्त्रों में तीन आकाशों की बात कही गयी है, पहला है
भूताकाश, जो हम बाहर देखते हैं, जिसमें यह धरती, ग्रह, चाँद, सूरज आदि हैं. इस
आकाश में ही बड़े-बड़े पर्वत हैं और इमारतें हैं. आज जहाँ खाली स्थान है, कल वहाँ
कोई महल था, आकाश को न उसके होने से कोई अंतर पड़ा न उसके न होने से. दूसरा आकाश
है, चित्ताकाश, जिसमें अनवरत हमारे विचार विचरण करते हैं. अच्छे विचार हों या
बुरे, सकारात्मक या नकारात्मक, चित्ताकाश को कोई अंतर नहीं पड़ता. ये दो आकाश तो
सभी को उपलब्ध हैं. तीसरा है चिदाकाश जिसकी हमें तलाश है, जो ध्यान में उपलब्ध
होता है. जहाँ हम अपने आप को आनंद स्वरूप विराट
परमात्मा में विलीन कर देते हैं. यह आकाश भी हमारे भीतर है, पर चित्ताकाश के पार
है. यहाँ प्रेम, शांति और सुख का सहज ही अनुभव होता है. मुठ्ठी भर भी इस आकाश की
उपलब्धि आत्मा को उड़ने के लिए पंख दे देती है.
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