५ मार्च २०१८
जल, वायु, प्रकाश, वृक्ष के रूप में प्रकृति के वरदानों का हम
प्रतिदिन उपयोग करते हैं. इनके बिना हमारा अस्तित्त्व ही सम्भव नहीं है. वैज्ञानिकों
के अनुसार आज जल के स्रोत घटते जा रहे हैं, दूषित हो चुके हैं. वायु में भी अनेकों
विषैले तत्व घुल गये हैं. विकास के नाम पर जंगल काटे जा रहे हैं. अर्थात मानव अपने
ही पांवों पर कुल्हाड़ी मार रहा है. वैदिक संस्कृति में हमें पंच तत्वों का सम्मान
करना सिखाया गया था, इन्हें देवता का सम्मान दिया गया था. वायु को देवता मानने
वाला समाज उसे प्रदूषित नहीं कर सकता था, हवन और यज्ञ द्वारा उसे पवित्र करता था. हम
मूल संस्कृति से दूर होते गये और धर्म के नाम पर कर्मकांड को अपना लिया. आज पुनः
जन-जन को उन्हीं आदर्शों को अपनाने की जरूरत है जिनमें प्रकृति को माँ का दर्जा
दिया गया था. माँ का दोहन नहीं किया जाता, उससे वरदान पाए जाते हैं. जल सरंक्षण
दिवस, पर्यावरण दिवस आदि यदि होली व दीपावली की तरह उत्सव का रूप ले लें तो जल के
स्रोत पुनर्जीवित किये जा सकते हैं, हर वर्ष लाखों वृक्ष लगाये जा सकते हैं.
आपका कहना सही है हम जिससे जीवन पाते हैं उसी को बर्बाद करने पे उतारू हैं आज ...
ReplyDeleteवाजिब चिंतन ...
बहुत खूब कहा आपने
ReplyDelete