७ मार्च २०१८
महिला दिवस पुनः आ गया है. वर्ष में एक बार
ही सही इस दिन दुनिया की आधी आबादी के संघर्ष को एक आवाज दी जाती है. उनके प्रति
सम्मान व्यक्त किया जाता है और उन्हें उनके सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक अधिकारों
का स्मरण भी कराया जाता है. आज के दिन उन्हें अपनी बात रखने व आवाज बुलंद करने की
आजादी है. उनका अतीत जैसा भी
रहा हो, उसे याद करती हुईं वे सुखद भविष्य के
स्वप्न संजोती हैं. यह भी सच है कि परिवार को एकता में सूत्र में बाँधने वाली,
शांति की चाहना रखने वाली महिलाएं आज भी अन्याय और हिंसा की शिकार होती हैं. उनके बारे में निर्णय लेने का अधिकार भी उन्हें
नहीं दिया जाता. उनकी शिक्षा पर या बीमार होने पर दवादारू के पैसे खर्च करना भी
खलता है. आज भी किन्हीं समाजों में उन्हें मानव होने के मूल अधिकार से भी वंचित
रखा जाता है, पर उनका संघर्ष जारी है और अब देर तक उन्हें समान अवसरों से वंचित
नहीं किया जा सकता. यदि समाज को चहुँमुखी विकास करना है तो किसी भी क्षेत्र में
महिलाओं के बिना महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिए जा सकते. आज गणित हो या विज्ञान
महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. समाज को यह मानना होगा कि महिला सशक्तिकरण
से ही समाज शक्तिशाली बन सकता है.
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