Thursday, March 29, 2018

बन जाएगा मन विशाल जब


२९ मार्च २०१८ 
हमारा छोटा सा मन खुद को नहीं जानता और एक सीमित दायरे में सिकुड़ा रहता है. जैसे एक छोटी सी तलैया स्वयं को विशाल समुन्दर से कितना छोटा मानती है पर दोनों में ही जल है, अर्थात गुणवत्ता की दृष्टि से दोनों समान हैं. मन जिस स्रोत से आया है वह अनंत सम्भावनाओं का केंद्र है, किंतु स्वयं को अपनी धारणाओं और मान्यताओं की कैद में सीमित मानता है. यदि वह एक बार इन्हें तोड़कर अपने भीतर झाँके तो शक्ति का एक सागर उसे नजर आता है. हम अपनी क्षमताओं को ही नहीं पहचानते और उत्तरदायित्वों से बचने का बहाना ढूँढ़ते हैं. समाज के लिए हम कुछ कर सकते हैं, ऐसी भावना ही तभी जन्मती है जब मन अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के पार निकल जाता है. ध्यान ही वह साधना है जो हमें अपनी छिपी हुई शक्तियों से परिचित कराती है. जीवन में सत्य का जागरण हो उसके लिए नियमित साधना और स्वाध्याय ही प्रथम और अंतिम आवश्यकता है.

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