३ मार्च २०१८
मन तितली या भंवरे की तरह इस विषय से उस विषय पर उड़ता रहता है, कुछ पल
को एक जगह रुका फिर फर से उड़ गया. हल्की सी आहट भी उसमें हलचल ला देने में समर्थ
है. फिर जैसे अचानक एक पुष्प पर तितली स्थिर हो जाती है और मधु का स्वाद उसे आने
लगता है, वह उड़ना भूल जाती है वैसे ही मन जब अपने मूल में टिक जाता है, आनंद का
अनुभव उसे होने लगता है, वह भटकना भूल जाता है. यदि कहीं जाता भी है तो पुनः घर
लौटना चाहता है. परमात्मा का सुख उसे पुकारता रहता है. ऐसी ही स्थिति के लिए सूरदास
ने कहा है, “जैसे उड़ी जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवे”. ध्यान का अभ्यास और जगत से
वैराग्य इन दो साधनों के द्वारा चंचल मन परम पुष्प के पराग का आस्वादन कर सकता है.
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteइसलिए को कहा है 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत'
सत्य है कविता जी..
Deleteस्वागत व आभार नदीश जी !
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