१६ मार्च २०१८
संत और शास्त्र के प्रति हृदय में श्रद्धा जगना परमात्मा की
सबसे बड़ी कृपा है. संतों के रूप में परमात्मा ही इस धरा पर प्रकट होते हैं, उनका
जीवन देखकर साधक प्रेरित होते हैं और स्वयं भी उसी दिशा की ओर चल पड़ते हैं.
शास्त्रों के अध्ययन और सत्संग के द्वारा ही हृदय में नित्य-अनित्य, शाश्वत-नश्वर,
सत्य-असत्य का विवेक जगता है, अनित्य के प्रति वैराग्य का जन्म होता है. मन में
चिंता की जगह चिन्तन, मोह की जगह मनन का उदय होता है. बुद्धि हानि-लाभ की जगह समता
में टिकने लगती है. मृत्यु का स्मरण करके अहंकार गलने लगता है और तब भीतर आत्मा का
जागरण होता है. जीवन संघर्ष की जगह उत्सव बन जाता है और जगत के प्रति सहज मैत्री भाव
बना रहता है.
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