Friday, August 17, 2012

सदगुरु ज्ञान है


जुलाई २००३ 
जैसे चन्द्रमा की ओर चकोर देखता है एक निष्ठ होकर, उसी तरह साधक ज्ञान की ओर चित्त को लगाता है. ज्ञान सारे धोखे हर लेता है, संसार की पोल खुल जाती है. भक्त वही है जो विभक्त न हो, हम केवल परमात्मा से ही विभक्त नहीं हो सकते, संसार से कितना भी जुड़ें अलग होना ही पड़ेगा. संसार हर पल बदल रहा है. सदगुरु का ज्ञान हमारे भीतर बादल बन कर बरसता है, सभी कुछ स्वच्छ करते हुए अंतरात्मा को भिगोता है, भीतर रस उत्पन्न होता है. अब संसार सत्य प्रतीत नहीं होता है, परमात्मा निकट आ गया है ऐसा प्रतीत होता है. मन रूपी पक्षी तभी पूर्ण शांति का अनुभव कर सकता है जब वह गुरु ज्ञान रूपी दानों को चुगे. परमात्मा रूपी खजाना जब भीतर है तो क्यों मन भिक्षु बन संसार से सुख माँगे, क्यों न उस खजाने को लुटाए.

8 comments:

  1. पढ़ने में सुख मिलता है। करने में चित्त 'चकोर' नहीं 'चंचल' बना रहता है।

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    1. देवेन्द्र जी, पढ़ते पढ़ते कब मन रंग जाता है पता ही नहीं चलता...

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  2. परमात्मा रूपी खजाना जब भीतर है तो क्यों मन भिक्षु बन संसार से सुख माँगे, क्यों न उस खजाने को लुटाए.

    परम ज्ञान की बातें

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  3. सदगुरु का ज्ञान हमारे भीतर बादल बन कर बरसता है, सभी कुछ स्वच्छ करते हुए अंतरात्मा को भिगोता है,

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  4. सुन्दर व् ज्ञानमय ।

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  5. अमृताजी, इमरान, धीरेन्द्र जी, रमाकांत जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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